हनुमान चालीसा हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध पौराणिक पाठ है, जो हनुमान जी को समर्पित है। इस पाठ का उच्चारण, गायन या सुनना हनुमान भक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।
हनुमान चालीसा का अर्थ होता है "चालीस" या जिसे अंग्रेजी में "40" कहा जाता है। हनुमान चालीसा में चौबीस (24) श्लोकों से मिलकर बना होता है। इसमें हनुमान जी की भक्ति के अलावा उनकी महिमा, शक्तियों, उपलब्धियों, जीवनी, लीलाएं आदि का वर्णन है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी के आशीर्वाद से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह पाठ विशेष रूप से शनिवार को किया जाता है, क्योंकि शनिवार को हनुमान जी का विशेष उपवास माना जाता है।
हनुमान चालीसा के अलावा भी हनुमान जी के अन्य कई पाठ और आरतियां हैं, जो उनके भक्तों द्वारा उच्चारित की जाती हैं।
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हनुमान चालीसा हिंदी में pdf: सम्पूर्ण पाठ डाउनलोड करें |
हनुमान चालीसा हिंदी में pdf: सम्पूर्ण पाठ डाउनलोड करें
श्री हनुमान चालीसा पाठ PDF डाउनलोड करें हिन्दी में: डाउनलोड करने ने से पहिले हनुमान चालीसा पाठ कैसे करें ये पढ़े
- सबसे पहले आपको एक शांत और सात्विक जगह ढूंढ़ना चाहिए जहां आप ध्यान लगा सकते हैं।
- अपनी आसन का चयन करें और उस पर बैठें। आप एक आसन पर बैठ सकते हैं या तो भूमि पर या फिर एक बैंच जैसी चीज़ पर बैठकर भी ध्यान कर सकते हैं।
- आप एक शुद्ध एवं स्पष्ट मन से शुरुआत करें। आपके मन में अन्य विचारों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
- अब आप श्री हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर सकते हैं। आप इसे अपनी पसंद के अनुसार या अपनी संगठन के अनुसार पढ़ सकते हैं। आप इसे अपनी भावनाओं के साथ पढ़ें।
- श्री हनुमान चालीसा के पाठ के बाद, आप ध्यान को उसी जगह पर लाएं जहां से आपने शुरुआत की थी।
- अंत में, आप श्री हनुमानजी की आराधना कर सकते हैं।
हनुमान चालीसा पाठ | हनुमान चालीसा हिन्दी में PDF | Hanuman Chalisa Lyrics Hindi PDF Download नीचे दी हुई लिंक पर क्लिक करके
।। दोहा ।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
।।चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर |
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ||
रामदूत अतुलित बल धामा |
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ||
महाबीर बिक्रम बजरंगी |
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै |
काँधे मूँज जनेऊ साजै ||
शंकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन ||
विद्यावान गुणी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा |
बिकट रूप धरि लंक जरावा ||
भीम रूप धरि असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||
लाय संजीवन लखन जियाए |
श्री रघुबीर हरषि उर लाए ||
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं |
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ||
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
यम कुबेर दिगपाल जहां ते |
कवि कोविद कहि सकें कहां ते ||
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना |
लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र जोजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं |
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी शरना |
तुम रक्षक काहू को डर ना ||
आपन तेज सम्हारो आपै |
तीनों लोक हांक तें कांपै ||
भूत पिशाच निकट नहिं आवै |
महाबीर जब नाम सुनावै ||
नासै रोग हरै सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट तें हनुमान छुड़ावै |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ||
सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा:
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
हनुमान जी की आरती | Hanuman Aarti PDF नीचे दी हुई लिंक पर क्लिक करके
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
देबेस दनव दानव छाड़े।
संकट मोचन कलिश विकार जाड़े॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारी सिया सुध लाए ||
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई ||
लंका जारी असुर संहारे।
सियारामजी के काज संवारे ||
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आणि संजीवन प्राण उबारे ||
पैठी पताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखाड़े ||
बाएं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे ||
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे।
जै जै जै हनुमान उचारे ||
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई ||
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई।
तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ||
जो हनुमानजी की आरती गावै।
बसी बैकुंठ परमपद पावै ||
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ||
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